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डाकू ने उसके पास आकर कहा-अय लड़के ! क्या तेरे पास भी कुछ है क्या ?
गौसुल ने कहा-हाँ, मेरे पास चालीस अफियाँ हैं । डाकू-कहाँ हैं ? कुर्ते के बगल के नीचे सिली हुई हैं।
डाकू ने समझा कि यह उपहास कर रहा है, वह आगे बढ़ गया । दूसरे डाकू ने भी उससे यही प्रश्न किया, उसको भी उसने वही उत्तर दिया । डाकू ने अपने सरदार से निवेदन किया । सरदार ने आदेश दिया कि इसकी अफियाँ निकालो। लड़के के बताये हुए स्थान को खोला गया तो चालीस चमचमाती अफियाँ निकलीं। डाकू का सरदार यह देखकर चकित था। उसने कहा लड़का तू तो बड़ा विचित्र है । तुमने चोरों को अपना माल बता दिया।
हजरत गौसुल ने कहा-मेरी प्यारी माँ ने चलते समय मुझे नसीहत दी थी कि सदा सच बोलना और ईश्वर को कभी मत भूलना । मैंने अपनी माँ की आज्ञा का पालन किया है।
डाकू आत्म-चिन्तन करने लगा कि एक यह है और एक मैं हूँ । उसको अपने कृत्य पर लज्जा आई, उसने लूटा हुआ समस्त धन लौटा दिया। ४४ बिन्दु में सिन्धु
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