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८४ पुण्यपुरुष
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पहचान सकते । अनेक बार उसने मुझे भी इसी प्रकार भ्रम में डाला है और फिर खिलखिलाकर हँस पड़ा है । उसके इस प्रकार हँसते ही मैं उसे पहिचान लेती थी । किन्तु समझ में नहीं आता कि अब इतने दिन हो गए, हम लोगों की विपत्ति भी दूर हो गई, तब वह कहाँ और क्यों छिपा बैठा है ?"
श्रीपाल ने माता की यह बात सुनी और कुछ सोचकर फिर कहा
"ठीक है माँ ! यदि वह शशांक है तो फिर मैं भी श्रीपाल हूँ । यदि एक सप्ताह के भीतर उसे खोजकर तेरे चरणों में न ला पटकूं तो........।"
" बस बस, बेटा ! तू कोई कठिन प्रतिज्ञा कर बैठेगा । मैं तेरे दृढ़ स्वभाव को जानती हूँ । तू रहने दे । मुझे विश्वास है कि इस जन्म में वह मुझे छोड़कर कहीं नहीं जा सकता । तुम दोनों तो मेरी दो आँखों के तारे जैसे हो । वह किसी आवश्यक कार्य में कहीं उलझ गया होगा । आता ही होगा ।"
संयोग की बात है कि उसी समय एक दासी ने कक्ष में प्रवेश किया और हाथ जोड़कर कहा
"प्रभु ! एक अद्भुत सँपेरा आया है । कहता हैउसके पास ऐसे-ऐसे अद्भुत सर्प हैं कि किसी ने कभी देखे तक न हों । हरे, लाल, पीले, चितकबरे, नीले, काले एक अंगुष्ठ जितने छोटे और विशालकाय अजगर की भाँति
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