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शशांक छाया की भाँति रानी कमलप्रभा के पीछे चलता था। वह जितना स्वामिभक्त था, उतना ही चतुर भी । वेशभूषा बदलकर बिलकुल नये रूप में प्रकट होने में उसका कोई सानी नहीं था। एक पल भर भी वह रानी को उनके प्रवासकाल में अपनी दृष्टि से ओझल नहीं होने देता था।
समय-समय पर वह रानी से प्रकट रूप में भी मिल लेता था। उन्हें किसी वस्तु की आवश्यकता होती तो ला देता था और कोई संकट प्रतीत होता था तो अपने बाहुबल और बुद्धि से उसका निवारण कर देता था।
इतना करके वह फिर उसी प्रकार अदृश्य हो जाता था, जैसे कोई मानवेतर आत्मा क्षण दो क्षण के लिए प्रकट हो और देखते-देखते ही विलुप्त हो जाय । __ अब श्रीपाल और मैनासुन्दरी राजा प्रजापाल के महलों में ही सुखपूर्वक निवास कर रहे थे। रानी कमलप्रभा भी उनके साथ थी। प्रजापाल अपने गुणी और सुन्दर जामाता श्रीपाल का तो मानो भक्त ही हो गया
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