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पुण्यपुरुष ७९ अशुभ परिणाम होता है जो उसे भोगना ही पड़ता है। अब ये-मेरे पूज्य पतिदेव पूर्ण स्वस्थ हैं। इनके अशुभ कर्म नष्ट हो गये हैं। ये आपका आदर करते हैं।"
मैनासुन्दरी ने उत्तर दिया और श्रीपाल ने झुककर राजा के चरण छूने चाहे, किन्तु राजा ने उसे बीच में ही अपनी दोनों बाहों में भर लिया और वैसे ही गद्गद् स्वर में कहा__"बेटा श्रीपाल ! क्षमा करना । मैं तुम्हें पहिचान नहीं पाया था। तुम अवश्य कोई विशिष्ट महापुरुष हो। आज मेरे जीवन की सबसे धन्य घड़ी है। किन्तु चलो, अब यहाँ कब तक खड़े रहेंगे? चलो, महलों में चलो। मैना की माता इससे मिलने के लिए आतुर होगी। बेचारी रो-रोकर आधी रह गई है।" ___रथ प्रस्तुत हुआ। राजा और मैनासुन्दरी रथ में बैठे। श्रीपाल भी रथ पर सवार होने जा ही रहा था कि उसके कानों में शब्द पड़े-श्रीपाल !
स्वर परिचित था। उस स्वर में इतना अगाध प्रेम था कि सुनने वाले के हृदय में अमृत के स्रोत फूट पड़ें।
श्रीपाल ने अपना पैर रथ की सीढ़ी से नीचे उतारा और पीछे मुड़कर देखा। ___और जो कुछ उसने देखा उसे देखकर वह वर्ष और विस्मय से पागल ही हो गया-उसकी माता, उसकी प्यारी, ममतामयी माता, जिसने अपने पुत्र की रक्षा के
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