________________
इस परिणाम से उत्साहित होकर उस कोढ़ी दल के प्रत्येक व्यक्ति ने भी धर्म और तप की शरण ली और धर्म ने अपना प्रभाव वैसा ही दिखाया। सभी कोढ़ी पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर अपने-अपने परिजनों से मिलने चारों दिशाओं में दौड़ते-भागते चले गये। इस प्रकार चारों दिशाओं में जैनधर्म की विजय-वैजयन्ती फहराने लगी।
उज्जयिनी नगरी ने यह चमत्कार देखा और वह चकित रह गई-धर्म का ऐसा प्रभाव ? नवकार मन्त्र तो मन्त्रराज ही सिद्ध हुआ। धन्य है भाई, ऐसे धर्म को ! धन्य-धन्य है मैनासुन्दरी को जिसने अपने प्राणों की भी चिन्ता न करके धर्म का आश्रय क्षण मात्र को भी न छोड़ा तथा प्रत्येक संकट का सामना अपनी अचल श्रद्धा द्वारा किया।
बात तो हवा के पंखों पर उड़ती है। आज तक जिस अहंकारी, कठोर पिता ने अपनी पुत्री की कोई खोज-खबर तक नहीं ली थी, उस अज्ञानी तथा मिथ्यात्वी राजा को भी जब यह समाचार ज्ञात हुआ तो वह भी चकित रह गया। उसका भी हृदय-परिवर्तन हो गया।
वह तुरन्त अपने सेवकों के साथ श्रीपाल से मिलने के लिए रवाना हुआ।
उस समय श्रीपाल तथा मैनासुन्दरी उन दिनों विचरण करते हुए उज्जयिनी में पधारे हुए जैन मुनिवर का प्रवचन सुनने गये हुए थे। राजा भी सदल-बल वहां जा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org