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________________ ७४ पुण्यपुरुष 'कर्म का फल टाले नहीं टलता । निरन्तर प्रभ-स्मरण तथा तप से कर्मों की निर्जरा हो जाती है।"-मुनिवर संकेत दिया। “यथार्थ है, भन्ते ! किन्तु हम किस विधि से, कैसा तप करें?" __ "नवकारमंत्र परम पवित्र मंत्र है । आत्मा के स्वाभाविक पवित्र स्वरूप को प्रकट करने वाला है। इस मन्त्र के माध्यम से पंच-परमेष्ठियों का निरन्तर स्मरण करते रहो। साथ ही कछ तपस्या भी रखो-आयंबिल व्रत बड़ा पुण्य प्रदाता है । धमलाभ ।" । ___इतना ही कहकर मुनि मौन हो गए। उन्होंने क्षणभर के लिए अपने नेत्र बन्द किये, कुछ चिन्तन किया, फिर नेत्र खोलकर पुनः बोले-"धर्मलाभ !" मैनासुन्दरी संकेत को समझ गई। मुनिवर जो कुछ कहना चाहते थे, कह चुके । उनका आशीर्वाद प्राप्त हो चुका। - वह उठ खड़ी हुई। उसके साथ ही श्रीपाल भी हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। श्रद्धापूर्वक दोनों ने तीन बार झुककर मुनिवर को मस्तक नमाया और फिर धीरे-धीरे वे वाटिका से बाहर निकल आये।। - मुनिदर्शन से उन दोनों भावुक प्राणियों का मन इतना भरा-भरा, ऐसा पवित्र उल्लासमय था कि अपनी कुटिया तक पहुँचने तक दोनों मौन ही चलते रहे और मुनिवर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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