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पुण्यपुरुष
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हम तो मनुष्य हैं। मैं आपको ऐसे ही एक अशरण की शरण में ले जाऊँगी।"
अब श्रीपाल भी उत्साह से भर गया । उसका रोगग्रसित चेहरा कुछ खिला, और वह जल्दी से उठकर अपने कार्य में लग गया । निबटते - नहाते वह सोच रहा था कि क्या उसके सद्भाग्य से कोई देवी ही उसे प्राप्त हो
गई है !
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नगरी से बाहर एक छोटी-सी वाटिका थी । छोटी तो थी, किन्तु सघन थी, सुरम्य थी, एकान्त स्थल था । संसार के कोलाहल से दूर हटकर एकचित्त से प्रभु स्मरण करने वालों के लिए वह आदर्श स्थान था ।
उस वाटिका में एक जैन महामुनि अपने कुछ शिष्यों के साथ आकर ठहरे थे। मुनि जीवन पवित्र है, दुर्लभ है और लोक कल्याणकारी भी है । जैन मुनि तपस्या एवं ज्ञानाराधना द्वारा स्वयं अपने कर्मों की निर्जरा करते हैं, अपनी स्वभाव से विशुद्ध आत्मा को मायाजाल से हटाकर शुद्ध बनाते हैं, तथा भव्य जीवों को भी उसी कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। जो भी व्यक्ति ऐसे मुनियों की वाणी सुनते हैं, उनमें श्रद्धा रखते हैं, तथा उनके बताए हुए मार्ग पर चलते हैं, उनका निश्चय ही इहलोक तथा परलोक दोनों सुधर जाते हैं ।
मैना सुन्दरी को जैनधर्म में शिक्षा मिली थी, और
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