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पुण्यपुरुष उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त हो लीजिए। आज में आपको एक ऐसे स्थान पर ले चलूंगी कि आप वहाँ चलकर मुग्ध हो जाएँगे।" ___"अच्छा ! भला ऐसा कौन सा स्थान तुमने इस एक दिन में ही खोज डाला है, जरा मैं भी तो सुनें । कहीं तुम कोई जादूगरनी तो नहीं हो ?"
मैना फिर हंसी। उसने अपनी दोनों हथेलियों में श्रीपाल के गालों को स्नेह से ढक लिया और कहा___"जादूगरनियाँ कोई होती हैं या नहीं यह मुझे नहीं मालूम। कम से कम मैं तो कोई जादूगरनी हूँ नहीं। मैं तो केवल आपके इन पवित्र चरणों की दासी, आपकी पत्नी हूँ। आप में तथा प्रभु में मेरी अटूट श्रद्धा है। इस श्रद्धा के बल पर मनुष्य अशक्य को भी शक्य बना सकता है।
"लेकिन अब आप बातों में समय नष्ट न कीजिए। उठिये और हाथ-मुँह धो लीजिए, स्नान करके शुद्ध हो जाइए फिर हमें चलना है........।" .. "लेकिन चलना कहाँ है यह भी तो कुछ कहो। हम जैसे अपाहिजों के लिए कहीं जाने की जगह ही कहाँ है ? शरण ही कहाँ है ?"
"फिर वही बात" मैना ने टोका- "आप उठिए, तैयार हो जाइये । तब मैं आपको बताऊँगी कि इस संसार में क्षुद्र से क्षुद्र कृमि-कीट के लिए भी शरण है। फिर
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