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पुण्यपुरुष ६५
" प्राणनाथ ! प्रणाम ! नया सबेरा आपको शुभ हो ।"
श्रीपाल ने असमंजस में मैना को देखा, कुछ क्षण और अपनी आँखें टिमटिमाई और फिर हाथ बढ़ाकर उसने मैना को अपने पास बिठाकर कहा
"मैना ! यह तुम्हीं हो न ? और यह कुटिया ? लेकिन कहाँ से आई ? यह सब क्या माजरा है ? क्या मैं कोई स्वप्न देख रहा हूँ
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मैना खुलकर हँसी । उसने एक मुक्त प्रेम-हास्य किया और उत्तर दिया
" महाशय ! यह नया सबेरा है। आज से हमारी नई कहानी प्रारम्भ होगी। आप कल की बात इतनी जल्दी भूल गए क्या ?"
"नहीं, भूला नहीं मैना ! लेकिन यहाँ तो सब कुछ बदला-बदला सा दिखाई पड़ रहा है । यह सुन्दर स्वच्छ कुटिया, ये खिड़की में रखे हुए सुन्दर पुष्प, यह अगरु-गन्ध, और........ किसी देवकन्या जैसी तुम........।"
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"चलो रहने दो । मेरी प्रशंसा करने की कोई आवश्यकता नहीं । यह तो मेरा कर्तव्य था सो मैं ने प्रातः शीघ्र उठकर यह सब काम कर डाला । मनुष्य को सदैव शुद्ध वातावरण में रहना चाहिये । उसका तन भी शुद्ध होना चाहिये, उसका मन भी शुद्ध होना चाहिये, उसके चारों ओर का वातावरण भी शद्ध होना चाहिये । "अच्छा, अब आप इन बातों को छोड़िये और शीघ्र
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