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६४ पुण्यपुरुष ___ यह सब कार्य पूर्ण होने पर उसने अपनी छोटी-सी कुटिया को झाड़-बुहारकर, लीप-पोतकर, तथा उस पर अलताएँ बनाकर इतना तो सुन्दर और स्वच्छ बना ही दिया था कि कल जिसने भी उस कुटिया को देखा हो, वह आज उसे पहचान भी नहीं सकता था। __कहीं से जुटा-जुटकर मैना ने कुटिया के चारों कोनों में अगरु-धूम भी कर दिया था। मन्द-मन्द सुवास कुटिया में फैल रहा था, उसे सुवासित कर रहा था और निश्चय ही, रोग के कीटाणुओं को दूर भगा रहा था।
प्रिय लगने वाली उस मन्द-मन्द सुगन्ध तथा मीठी बोली में बोल रहे पक्षियों के स्वर से श्रीपाल की नींद खुली। आँखें खोलकर जब उसने अपने चारों ओर देखा तो भौंचक्का सा रह गया। एक बार तो उसे भ्रम हुआ कि वह जागा नहीं है, कोई स्वप्न देख रहा है। ऐसा सोचकर उसने अपनी आँखें फिर से बन्द कर ली।
मैनासुन्दरी चुपचाप एक ओर खड़ी यह सब देख रही थी। उसे बड़ा आनन्द हुआ। वह धीमे-धीमे कदमों से चलकर श्रीपाल के पास गई और अपनी कोमल-कोमल कली जैसी अँगुलियों से उसने श्रीपाल के नेत्र-पटलों को सहलाया।
उस कोमल, भावपूर्ण स्पर्श से श्रीपाल ने फिर आँखें खोलीं। फिर उसे भ्रम हुआ और फिर वह आँखें बन्द करने ही जा रहा था कि मैना कूकी
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