________________
नई जिन्दगी का नया सबेरा। मैनासुन्दरी को आज आकाश कुछ अधिक नीला-चमकीला लग रहा था । आसपास जंगल में खिले फूल-उसे अधिक चमकीले, अधिक मनमोहक लग रहे थे। कलरव करते पक्षी ऐसे लगते थे जैसे किसी उत्सव में निमग्न हों। जैसे कहीं कोई बड़ी, महत्त्वपूर्ण, शुभ घटना घटित होने वाली हो। .. कल और आज में बड़ा परिवर्तन था।
कल तक रोग, उदासी, असमर्थता, संसार की घृणा -यही सब कुछ श्रीपाल और उसके साथियों के मानसपटल पर घिरा रहता था। किन्तु आज वे उतने उदास, . दीन-हीन, असमर्थ नहीं प्रतीत होते थे । .. मैनासुन्दरी ब्रह्ममुहर्त में ही उठ गई थी। तब तक श्रीपाल रात की थकान से सोया हुआ ही था । उसने उठकर नित्यकर्म निबटाए, स्नानादि से निवृत्त होकर वह ध्यानस्थ हो गई। जब वह ध्यानस्थ थी तब निखिल सृष्टि उसके लिए शून्य बन गई थी और उसके चित्त में केवल वीतराग भगवान की असीम अनुकम्पा ही विराजमान थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org