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६२ पुण्यपुरुष
"मैना ! तुम जो कुछ कह रही हो वह तत्त्व की बात है, और बिल्कुल ठीक है । मैं मानता हूँ। किन्तु इस समय तो हमारे सामने प्रश्न व्यवहार के संसार का है। यह रोग, हो सकता है कि साध्य भी हो, किन्तु इसका यह अर्थ तो नहीं कि मैं जानते-बूझते हुए भी तुम्हें अपने साथ इसका रोगी बना ही हूँ।
"इसीलिए मैना ! मैं यह कहना चाहता था कि यदि तुम ठीक समझो और चाहो, तो मुझसे दूर........." ___ "मैं आपके आशय को प्रारम्भ से ही समझ गई थी।" -श्रीपाल के मुख पर अपनी कमल जैसी कोमल हथेली रखते हुए उसने कहा-"किन्तु नाथ ! अब इस बात को समाप्त समझिए। आप मेरी बात को समझ गये हैं और मैं आपकी बात को। वह कहानी समाप्त ।"
मैनासुन्दरी ने मुस्कुराते हुए श्रीपाल को भावी सुखद जीवन की आशा दिलाते हुए कहा__ "आइये, मेरे देवता ! आइये, मेरे साथ आइये, और अब हम अपनी नई कहानी प्रारम्भ करते हैं-नई कहानी, जिसमें आपका प्रताप समस्त लोक को आलोक प्रदान करेगा।"
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