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६. पुण्यपुरुष न समझें और यथार्थ को स्वीकार करें, उससे प्रेम की दो बातें करें।
किन्तु श्रीपाल चिन्तित था।
उसे चिन्ता थी कि उसके संसर्ग में रहने से इस बेचारी निरपराधिनी विदुषी बाला को भी यह रोग लग जायगा और इसका जीवन नष्ट हो जायगा। श्रीपाल स्वार्थी नहीं था। वह महापुरुष था। कर्मों का दुष्प्रभाव आज उसे इस रूप में ले आया था किन्तु उसका भावी महान् था। अनेक भटके हुए जीवों को वह आत्म-कल्याण का मार्ग दिखाने वाला था।
श्रीपाल विषय-लोलुप भी नहीं था। अन्य कोई विषयलोलुप, स्वार्थी मानव-पशु होता तो वह ऐसी सुन्दरी और नवयौवना वधू के साथ रागरंग में डूब जाता और अपने साथ ही उसके जीवन को भी विषयों की सड़न के गर्त में धकेल देता।
किन्तु श्रीपाल तो श्रीपाल ही था। स्थिर शान्त बैठकर उसने मैना को समझाना चाहा
"देखो मैना ! यह तो तुम देख ही रही हो कि मुझे कोढ़ ने ग्रस लिया है। और यह रोग असाध्य है........।"
"नहीं है।"
मैना ने मुस्कुराते हुए यही दो शब्द कहे और श्रीपाल टुकुर-टुकुर उसकी ओर देखता ही रह गया। वह सोच रहा था-कितनी दृढ़ आत्मश्रद्धा है इस लड़की में ! कैसी
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