________________
५८
पुण्यपुरुष आहट पाकर मैनासुन्दरी ने पलटकर देखा-उसके पूज्य पतिदेव !
वह उठी, मंथर कदमों से आगे बढ़ी, पति के समीप पहुँची, उसके दानों कंधों पर स्नेहपूर्वक अपने कोमल हाथ रखे, और कहा
"देवता ! पतिदेव ! आप क्या सोच रहे हैं ?"
उम्बर राणा के स्थान पर अब हम उसके वास्तविक नाम श्रीपाल का ही प्रयोग करें तो कथा में अधिक मार्मिकता आयगी। कोढ़ी उम्बर राणा के रूप में श्रीपाल अपनी नववधू के हस्तस्पर्श से सिहर उठा, मानो वधू मैना न हो, वह स्वयं ही हो।
उस चन्द्रमुखी मैना की मुस्कान और अधिक खिल उठी। मैना के-से ही मधुर स्वर में वह बोली____ "नाथ ! मेरे जीवन-सर्वस्व ! आप उदास क्यों हैं ? आपको तो प्रसन्न होना चाहिए कि मेरे जैसी सुन्दरी राजकन्या आपको प्राप्त हो गई है।"
अब श्रीपाल के उत्तर देने की बारी थी। उसने धनगंभीर स्वर में कहा
"राजकुमारी ! मैं सोच रहा हूँ कि यह क्या हो गया ? कहाँ तुम और कहाँ मैं ? तुम नन्दनवन का प्रफुल्ल पारिजात पुष्प और मैं इस संसार का घृणित सड़ागला कोढ़ ! तुम हिमालय की शुभ्र पवित्रता और मैं कीच
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org