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पुण्यपुरुष ५५ लोगों को, जो अपने क्षुद्र से क्षुद्र स्वार्थ के लिए किसी भी अबोध अथवा अशक्त प्राणी का सर्वनाश करने में भी नहीं चूकते।
पर जो होना था, वह हुआ।
धूमधाम से राजकुमारी मैनासुन्दरी तथा कोढ़ी उम्बर राणा का विवाह हो गया।
__उस धूमधाम में कितने लोगों की आहे और आँसू छिपे थे, इसे किसी ने नहीं जाना । उज्जयिनी के नागरिक कोई अन्धे तो थे नहीं जो इस भीषण अन्याय को देख नहीं सकते ? अथवा देखकर अपनी आँखों के सामने के अबोध बालिका का इस प्रकार से लगभग जीवित मरण देखकर द्रवित न होते ? धूमधाम केवल राजा के खरीदे हुए गुलामों के ढोल-ढमालों की थी। शेष सारी नगरी उदास थी। आबाल-वृद्ध उस दुष्ट राजा को मन ही मन कोस रहे थे, मैनासुन्दरी के दुर्भाग्य पर चुपचाप आँसू बहा रहे थे और उसके भविष्य के लिए मंगलकामना भी रहे थे।
साहस किसी का न था कि राजा की आज्ञा के विरोध में एक शब्द भी कहे।
विसर्जन हुआ। नागरिक सिर नीचा किये अपने-अपने घरों को लौट गए। अधिकांश घरों में उस दिन चूल्हा भी नहीं जला।
शाम पड़े दीपक जलाकर अपना शोकभरा मुख देखने
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