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५४ पुण्यपुरुष और भय होता है कि आखिर इस मानव-जाति का भविष्य क्या होगा?
किन्तु कथा को तो आगे चलना है। इस कथा में से ही पाठक अपनी सामर्थ्य के अनुसार सार ग्रहण करेंगे।
राजा प्रजापाल ने जब मन्त्री को आदेश दिया तो मन्त्री, तथा वहाँ उपस्थित सभी चापलूस एक बार तो सन्न रह गये। क्योंकि वे जानते थे, अपने हृदय में उन्हें उनका ही विश्वास कहता था कि मैनासुन्दरी भली लड़की है, ज्ञानी है, उसने धर्म के तत्त्व को ठीक समझा है और वह अत्यन्त दृढ़ चरित्र वाली लड़की है। उसने अपने धार्मिक विचार बिना प्राणों की चिन्ता किये हुए भी सभा के सम्मुख रख दिये।
किन्तु चापलूसों को धर्म की बात से क्या लेना-देना ? उन्हें तो अपना उल्लू सीधा करने से मतलब । सो क्षणभर की शान्ति के बाद ही वे सब एक साथ बोल पड़े
"अन्नदाता की जय हो ! महाराज ने बड़ा सुन्दर हल इस समस्या का निकाल लिया है। राजकुमारी मैनासुन्दरी को अपने धर्म-कर्म का बड़ा अभिमान है। अब उसका सारा अभिमान गल जायगा। अन्नदाता ! आपने एक ही तीर से वास्तव से दो निशाने मार लिए हैं। आपकी बुद्धि को धन्य है।"
1 x x x धिक्कार है ऐसे मूढ़मति, मदान्ध, स्वार्थी, विषय-लोलुप
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