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पुण्यपुरुष
" अब देखते क्या हो ? जाओ, हमारी आज्ञा उन्हें सुना दो । कल बरात नगर-द्वार पर आ जानी चाहिए ।"
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किन्तु मन्त्री का माथा ठनक गया था । अपने सिर को जमीन की ओर कुछ और झुकाकर हाथ बाँधे हुए ही उसने कहने का साहस किया
"महाराज ! आप सर्वशक्तिमान हैं । आज जो चाहें सो कर सकते हैं । किन्तु महाराज आप किस लड़की के करम फोड़ने का विचार कर रहे हैं...
"बको मत । वह लड़की बड़ी धर्म-कर्म की बातें करती है न ? भरी सभा में मेरा अपमान भी उसने किया है । अब देखता हूँ कि उसके कर्म उसे क्या-क्या खेल दिखाते हैं ।"
"आपका मतलब, महाराज महाराज
कुमारी........।”
ܝܐ
कहीं..
कहीं ........कहीं राज
"तुम भी बुद्धिमान हो मन्त्री ! जल्दी ही बात समझ जाते हो । हाँ, मेरा मतलब मैनासुन्दरी से ही है । मैं सोच रहा था कि उसे क्या शिक्षा दूं जिससे कि उसका गर्व गलित हो जाय । लगे हाथ मेरे द्वार पर आये हुए याचकों की इच्छा पूर्ति भी हो जायेगी और मैना को उसके कर्मों का फल भी मिल जायेगा । एक तीर से दो निशाने हो जायेंगे ।"
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अज्ञान के अन्धकार में भटकता हुआ, मिथ्या को सत्य मानता हुआ और गर्व के पाश में जकड़ा हुआ एक पिता
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