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पुण्यपुरुष ५१ "जो आज्ञा महाराज" - कहकर मन्त्री मुड़ा। वह द्वार के पास तक गया ही था कि अचानक राजा ने उसे पुकारा
"मन्त्री !" आश्चर्य में डूबा मन्त्री उल्टे पैर लौट आया । बोला"अन्नदाता !"
"अरे मन्त्रिवर ! हमें एक कमाल की बात सूझी है। तुम भी सुनोगे तो हमारी प्रत्युत्पन्नमति की प्रशंसा करोगे। करोगे न ?"
"महाराज ! आपके ज्ञान और विवेक के सहारे तो यह सारी राज्य चल ही रहा है। जनता आपकी प्रशंसा करते थकती ही नहीं।" ___ "तो सुनो, उन उल्लू के पट्ठों से कह दो कि कल वे अपनी बरात सजाकर अपने कोढ़ी दूल्हे को नगर के द्वार तक ले आएँ। उस दूल्हे की शादी ऐसी सुन्दर लड़की से की जायगी कि उनकी सात पीढ़ियाँ तर जायँ। और उस नालायक लड़की........।" .. मन्त्री राजा की इस अचानक पलट गई दिमागी हरकत से असमंजस में पड़ा खड़ा हुआ चुपचाप सुन रहा था
और समझने की कोशिश कर रहा था कि राजा की मर्जी क्या है। उसे इस प्रकार मुँहबाए खड़ा देखकर राजा ने कुछ क्रोध से कहा
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