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________________ ४८ पुण्यपुरुष ठौर-ठिकाना तो हम अपंगों का भगवान ने ही छीन लिया है । अब कौन से ठौर-ठिकाने की तलाश करें? जहाँ रात पड़ जाय, गूदड़े पसारकर पड़े रहते हैं। धन-सम्पत्ति को भी लेकर कहाँ रखें? ले भी लेंगे तो अभी कुछ ही देर में आपके सिखाए-पढ़ाए सैनिक, चोर-उचक्के उसे वापिस ले जायेंगे। और अन्न तो भगवान दो जून को जैसे-तैसे जुटा ही देता है । कुछ नहीं मिलता तो जंगल के कन्दमूल-फल तो मिल ही जाते हैं........" ___"अरे, तू तो भाषण झाड़ रहा है कि प्रार्थना कर रहा है । जल्दी से कह कि क्या चाहिए तुझे ?" मन्त्री अकुलाकर बोला। __ "महाराज हमारी एक ही इच्छा है। हिम्मत करके कह दूँ ?" "हाँ, हाँ, कह दे । जल्दी से कह दे।" "तो प्रभु ! हमारा राजा है न- उम्बर राणा, वह बड़ा होनहार है । जवान है । आप देखें तो कहें कि ऐसे देवता पुरुष को यह रोग कैसे लग गया--भाग्य की लीला हैकर्मों का ही फल है- सो महाराज वे अभी कुंवारे हैं । उनके लिए हमें कोई सुलक्षणा लड़की चाहिए। आपके दानी महाराज उनके लिए कोई अच्छी-सी लड़की तलाश करके उनका ब्याह रचा दें तो बस हम लोग गंगा नहा लें....." "गंगा नहा लें? अरे, तू कबर में पांव लटकाए बैठा है और तुझे शादी-ब्याह की सूझ रही है। किसी भली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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