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पुण्यपुरुष ४७ "ठीक है, ठीक है, मतलब की बात कहो।"-मन्त्री ने टोका, वह एक क्षण भी अधिक उस आदमी के पास ठहरना नहीं चाहता था--"तुम लोग क्या चाहते हो? अभी महाराज से कहकर तुम्हें दान दिला देता हूँ।"
यह सुनकर बूढ़ा नायक कुछ क्षण सोच-विचार में पड़ गया। पहले तो उसने सोचा कि राजा से पर्याप्त धनसम्पत्ति मांग ले, ताकि कुछ समय कहीं एकान्त में रहकर गुजारा जाय किन्तु इतने में ही उसे ध्यान आया कि उनका राजा-उम्बर राणा- (श्रीप ल) अब युवक हो गया है। यद्यपि उसे कोढ़ ने ग्रस लिया है, फिर भी उसका शरीर बलिष्ठ है औरा कान्तिमान भी है । वह अब तक अविवाहित भी है। यह राजा बड़ा दानी समझा जाता है । तो इससे अपने प्रिय राजा के लिए किसी अच्छी लड़की की मांग ही वह क्यों न कर ले ? सम्भव है शुभांगी सुलक्षणा लड़की के आने से उम्बर राणा और उसके साथ ही अन्य लोगों का रोग भी दूर हो जाय । ईश्वर की लीला को कौन जानता है।
यह सोचकर उसने हाथ जोड़कर मन्त्री से कहा
"महाराज ! आपके राजा बड़े दानी-ज्ञानी हैं न? हम जो मांगेंगे वह दे तो देंगे न ?"
"क्यों नहीं ? अवश्य देंगे। बोल तुझे क्या चाहिए ? धन चाहिए? अन्न चाहिए ? वस्त्र चाहिए? कोई जमीन चाहिए ठौर-ठिकाने के लिए ?"
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