________________
पुण्यपुरुष ४५
अतः उनसे पूछ लिया जाय कि वे क्या चाहते हैं । बहुत से बहुत कुछ चाहेंगे तो कुछ दवा-दारु, कुछ कपड़े-लत्ते, कुछ अनाज- वनाज या दो-चार गधे खच्चर । सो आप उन्हें प्रदान कर दें । जंगलों में ये पड़े रहेंगे या आगे कहीं चल देंगे ।"
"ठीक है । तो तुम्हीं जाओ मन्त्रिवर ! जाकर पूछ लो कि वे क्या चाहते हैं और उसका इन्तजाम कर दो । अब हम इधर आगे नहीं जायेंगे। लौटकर हम राजोद्यान में कछ समय विश्राम करेंगे, हमारा सिर दुखने लगा है ।"
राजा अपना मार्ग पलटकर राजवाटिका की ओर चल पड़ा तथा मन्त्री सकुचता हुआ कोढ़ियों की ओर ।
X
x
X
मन्त्री चल तो पड़ा, राजा की आज्ञा जो थी, करता तो और करता भी क्या ? किन्तु अपने मन में वह डर रहा था कि कहीं उनकी छूत उसे न लग जाए, वरना वह बेमौत मारा जाएगा और पीढ़ियों-दर- पीढ़ियों से राजकोष में से चुराई हुई अथाह सम्पत्ति धरी की धरी रह जाएगी ।
-
खैर, जाना तो था ही सो वह चला । दूर से ही सड़ेगले अंगों से बहते मवाद की दम घोटने वाली बदबू उसे आने लगी और उसका जी मिचलाने लगा। दिन-रात राजमहलों में चन्दन और इत्रों की वाले उस मन्त्री की निरीह हालत उस ही थी ।
Jain Education International
सुवास में श्वास लेने समय देखने लायक
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org