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४४ पुण्यपुरुष
इस प्रकार उस काफिले का हालचाल जानकर अश्वारोही तेज चाल से घोड़ा दौड़ाता हुआ राजा के पास आ पहुँचा और सिर झुकाकर बोला___ "अन्नदाता ! अच्छा हुआ कि आप आगे नहीं बढ़े, अन्यथा सर्वनाश हो जाता।" ___ "क्या मतलब? क्या कोई भयानक शत्रु आ चढ़ा है ?" ___"अरे महाराज, शत्रु हों तो उनके दाँत खट्टे करने के लिए सेवक हाजिर हैं किन्तु ये तो सड़े-गले कोढ़ियों का काफिला है। किसी की नाक गल गई है। किसी के हाथपैरों की अंगुलियों का पता नहीं। किसी के शरीर से रक्त और मवाद बह रहा है--छिः छिः।"
राजा विचार में पड़ गया। ऐसे भयानक रोगियों को अपनी राजधानी में प्रवेश देना तो सचमुच सर्वनाश को ही निमन्त्रण देना है। आखिर उसने अपने मन्त्री से सलाह ली
"मन्त्रिवर ! यह बला यहाँ कहाँ से आ गई ? क्या करना चाहिए ?"
मन्त्री चतुर था। उसने दुनिया देखी थी। वह बोला
"महाराज ! गरीब, भाग्य के मारे, अपंग, अपाहिज वे दीन कोढ़ी हैं । बहुत दूर से आपसे कुछ आशा लेकर आये होंगे। प्रजापालक के रूप में अपकी ख्याति जग विख्यात है।
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