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मैनासुन्दरी की माता ने अपनी दासियों से जब राजसभा का सारा हाल सुना और राजा के भीषण क्रोध की बात उसने जानी तब वह अपनी प्यारी बेटी के भविष्य की चिन्ता से अधमरी हो गई।
किन्तु शीघ्र ही मैनासन्दरी अपनी माता के पास आई और उसके चरणों का स्पर्श करके बोली
"माता ! तू उदास क्यों होती है ? तूने ही तो मुझे जिनधर्म की शिक्षा स्वयं दी है तथा पूज्य जैनाचार्य से भी शिक्षा दिलवाई है। तू इतनी धीर-गम्भीर और ज्ञानी होकर भी यदि दुःख करेगी तो फिर मेरे जैसी अबोध बालिका का क्या ठौर-ठिकाना रहेगा ? अतः माता ! तू दुःखी न हो । मुझे दृढ़ विश्वास है कि मनुष्य यदि सत्कर्म करता चले तो उसका कोई अनिष्ट कभी नहीं हो सकता।" ___"किन्तु बेटी ! तेरे पिता बड़ें क्रोधी हैं। अपने क्रोध के आवेश में वे तुझे कड़े से कड़ा दण्ड भी तो दे सकते हैं। यदि तुझे कुछ हो गया तो मैं कैसे जीवित रहूँगी ?"
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