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पुण्यपुरुष
क्रोध के आवेश में इतना कहकर राजा प्रजापाल खड़ा हो गया। सारी राजसभा स्तब्ध और अवाक स्थिति में खड़ी हो गई । मैनासुन्दरी भी शान्तभाव से हाथ जोड़कर खड़ी हुई और उसने कहा___ "पिताजी ! इस समय आप मिथ्याभिमान और क्रोध से ग्रसित हैं। धर्म के सार-स्वरूप मेरी बात को आप समझना नहीं चाहते। किन्तु मैं विवश हूँ। मेरी तो यही मान्यता दृढ़ और अटल है कि प्राणी अपने ही कर्मों का शुभ-अशुभ परिणाम भोगता है। मेरे भी भाग्य में जो होगा, अर्थात् जैसा भी मेरे कर्मों का उदय होगा, उसे मैं धैर्यपूर्वक सहन करूंगी।" __ "चूल्हे में गए तेरे कर्म और भाड़ में गया तेरा ज्ञान ।"-"कहता हुआ, क्रोध से फुफकारता हुआ, आँखों से अंगारे बरसाता हुआ राजा वहाँ से चला गया।
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