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________________ पुण्यपुरुष ३७ "पिताजी ! आपने बिलकल ठीक कहा है। आप महा समर्थ हैं । आप ही की कृपा से इस राज्य के सभी प्राणी जीवित हैं । वस्तुतः इस संसार में जीवनदाता दो ही तो हैं - एक तो जीवन - जल से भरे-पूरे श्यामल मेघ तथा दूसरा राजा । संसार का अस्तित्व ही इन दोनों पर निर्भर है ।" सुरसुन्दरी ने ब्राह्मण पण्डित से शिक्षा पाई थी । अतः जीवन, जीव, जगत के वास्तविक स्वरूप से वह अनभिज्ञ थी । उसके मन में तो सांसारिक सुख भोग की ही लालसा थी, चाहे वह किसी भी मूल्य पर प्राप्त हो । 1 उसके इस कथन को सुनकर राजसभा में उपस्थित सभी चापलूस राजपुरुष 'वाह-वाह कर उठे । राजा भी अपनी मिथ्या प्रशंसा से फूला नहीं समाया । अत्यन्त प्रसन्न होकर उसने कहा "बेटी सुरसुन्दरी ! तेरे ज्ञान तथा अपने प्रति तेरे प्रेम और आदर से मैं परम प्रसन्न हूँ । शीघ्र ही मैं तेरा विवाह किसी सुयोग्य वर से कर दूँगा और तेरे सुख-सौभाग्य की वृद्धि करूंगा । मेरी कृपा से तुझे कभी कोई कष्ट नहीं होगा ।" सुरसुन्दरी को मनचाहा वरदान मिल गया, क्योंकि सभा में कुरुजांगल देश का राजा अरिदमन उपस्थित था, जिस पर सुरसुन्दरी अनुरक्त हो रही थी । वह समझ गई थी कि राजा ने जो यह बात कही वह उसके हृदय की इसी भावना को लक्ष्य करके ही कही थी । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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