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________________ पुण्यपुरुष ३५ में। वह सम्यक्त्वी थी। जैनधर्म में उसकी प्रगाढ़ आस्था थी और प्रत्येक जिनधर्मावम्बी व्यक्ति की भाँति वह शान्त धर्मिष्ठ तथा गुणवती थी। दोनों रानियों ने एक-एक रूपवती कन्याओं को जन्म दिया था। वे राजकुमारियाँ जब शिक्षा ग्रहण करने योग्य आयु की हुईं, तब सुरसुन्दरी को, जोकि सौभाग्यसुन्दरी की पुत्री थी, शिक्षा-प्राप्ति हेतु वेदशास्त्र-पारंगत ब्राह्मण को तथा मैनासुन्दरी को, जोकि रूपसुन्दरी की पुत्री थी, जिनमत के अनुयायी एक विद्वान आचार्य को सौंप दिया गया। दोनों आचार्य अपने पृथक-पृषक तरीके से, अपनी पृथक-पृथक श्रद्धा और मान्यता के अनुसार बालिकाओं को शिक्षा प्रदान करने लगे। सुरसुन्दरी ने उस ब्राह्मण पंडित से चौंसठ कलाएँ सीखीं। शब्दशास्त्र, निघंटु, चिकित्साशास्त्र आदि का भी अध्ययन किया। ___ मैनासुन्दरी ने अपने गुरुदेव से काव्य, संगीत, ज्योतिष, वैद्यक तथा अन्य विविध कलाओं की शिक्षा प्राप्त की। धर्मशास्त्र का उसने गहन अध्ययन किया । जैन सिद्धान्तों का रहस्य जानने के लिए स्याद्वाद का मार्ग तो उसे अद्भुत ही प्रतीत हुआ। उसने सातों नय, नव तत्त्व, षट्द्रव्य तथा उनके गुण-पर्यायों का अभ्यास किया। कर्म विवेचन, संघयण, क्षेत्रसमासादि प्रकरण अर्थ सहित उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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