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पुण्यपुरुष
कल्पना भी नहीं कर सकता था कि वह कोढ़ियों के साथ, उनका राजा बनकर रह रहा होगा।
इस प्रकार निश्चिन्ततापूर्वक वह काफिला इधर-उधर घूमता-घामता एक बार मालवप्रदेश में जा निकला। आर्यावर्त का यह प्रदेश इतना श्री-सौन्दर्यसम्पन्न है कि इसकी तुलना स्वर्ग के अतिरिक्त और किसी से भी नहीं की जा सकती। 'पग-पग रोटी, डग-डग नीर' वाली उक्ति मालवप्रदेश के लिए सर्वथा उपयुक्त ही है। हरे-भरे सघन वनों और खेतों के बीच से वर्षभर पानी से छलकती रहने वाली नदियाँ और निर्झर इस प्रदेश में प्रवाहित होते रहते हैं।
इस शस्य श्यामला भूमिखण्ड की सुशोभित राजधानी थी उज्जयिनी । इस नगरी का सौन्दर्य भी अद्भुत था। क्षिप्रा नदी के तीर पर बसी इस नगरी को जिसने नहीं देखा, वह स्वयं को अभागा ही समझता रहा।
उज्जयिनी का राजा था प्रजापाल । प्रजापालक तो वह अवश्य था, किन्तु था कुछ अहंकारी । वह स्वयं को सर्वशक्तिमान मानता था और इस प्रकार मिथ्यात्व से ग्रसित था।
ऐसी ही मिथ्यात्वी थी उसकी रानी सौभाग्यसुन्दरी।
किन्तु राजा प्रजापाल की एक दूसरी रानी भी थीरूपसुन्दरी। नाम के अनुरूप वह परम सुन्दरी तो थी ही, किन्तु उसका वास्तविक सौन्दर्य निहित था उसके गुणों
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