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________________ पुण्यपुरुष ३१ बनेगी | जल्दी कीजिए, कुमार और मुझे ढकने के लिए एक-एक वस्त्र दे दीजिए ।" " और मुझे भी । जल्दी करो नायक ! महारानीजी ने निर्णय कर लिया है । हम लोग तुम्हारे काफिले के साथ ही छिपकर आगे चलेंगे ।" "हम लोग नहीं, शशांक ! केवल कुमार ओर में । तुम लौट जाओ ।" "यह असम्भव है महारानी जी !" - रोने रोने को हो आया शशांक बोला- “आपको इस तरह अकेली छोड़कर मैं नहीं जा सकता। यदि आपने मुझे साथ नहीं लिया तो मैं इसी क्षण यहीं अपने प्राण त्याग दूंगा ।" रानी कमलप्रभा ने प्रत्येक भीषण से भीषण संकट का सामना साहसपूर्वक करने का अटल निश्चय कर लिया था- जो होना है सो हो जाय । वह आगे बढ़ी, बड़े स्नेहपूर्वक उसने अपना हाथ शशांक के कंधे पर रखा और कहा " शशांक ! तुम जैसे बलिदानी स्वामिभक्तों की जीवनगाथा इतिहास में सदा अमर रहेगी । मैं तुम्हारी भावना को समझ रही हूँ । किन्तु हमारी सुरक्षा की जिस भावना से प्रेरित होकर तुम हमारे साथ ही चलने का आग्रह कर रहे हो, उस भावना को मूर्त रूप देने का मार्ग यही है कि तुम अभी लौट जाओ । यहाँ से एकदम अदृश्य ही हो जाओ और फिर गुप्त रूप से हमारी खोज-खबर लेते रहो । हमारी सहायता दूर-दूर रहकर समय-समय पर, परिस्थितियों के अनुसार करते रहो । समझे ? अभी हमारे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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