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पुण्यपुरुष अन्यथा यहाँ रुकने का अर्थ तो सुनिश्चित मृत्यु ही है। अतः शशांक ! जाओ, जल्दी करो।"
"किन्तु महारानी जी ! वे कोढ़ी हैं........।"
"उनका शरीर ही इस रोग से ग्रस्त है, आत्मा नहीं। शशांक ! वह पापी अजितसेन तो आत्मा का कोढ़ी है। वह इन निरीह, भोले, गरीब कोढ़ियों से अधिक भयानक है। जल्दी करो।"
विवश शशांक पुकार लगाता हुआ कुछ दूर जाते यात्रीदल की ओर दौड़ा।
रानी ने कुमार को गोद में भरा और वह भी जितना संभव था उतना तेजी से उसी ओर चल पड़ी।
जब रानी कुमार के साथ जनपथ पर उस यात्रीदल के समीप पहुँची तब उसने उस दल के नायक को शशांक से बात करते हुए सुना । नायक कह रहा था___"श्रीमान् ! हम महारानीजी और कुमार को छिपा लेंगे, अपने प्राण देकर भी उनकी रक्षा करेंगे, किन्तु आप यह तो सोच लीजिए कि हम कोढ़ी हैं। हमारी छूत से रानीजी और कुमार को भी यह रोग लग सकता
है........।"
उत्तर रानी कमलप्रभा ने ही दिया
"चिन्ता नहीं, नायक ! आप लोगों को यह शारीरिक व्याधि अवश्य है, किन्तु आप लोगों की आत्मा पवित्र है। यह पवित्र आत्मा ही इस संकट काल में हमारा सहारा
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