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पुण्यपुरुष
साथ चलकर क्या करोगे ? ये वृद्ध नायक हैं, अब ये मेरे पिता के ही समान हैं । ये हमारी रक्षा करेगे-प्रभु हमारी रक्षा करेगा।" ___ कोढ़ियों के वृद्ध नायक की बुझी-बुझी-सी आँखों में आँसू भर आये थे। उसने कहा___ "श्रीमान् ! महारानीजी ठीक कहती हैं। आप दूर रहकर इनकी बहुत मदद कर सकेंगे। इनके शत्रुओं की गतिविधि पर दृष्टि रख सकेंगे। आप चिन्ता न करें। हम कोढ़ी अवश्य हैं, किन्तु कायर नहीं हैं । मैं, मेरा परिवार, और मेरे दल का प्रत्येक सदस्य अपना सिर कटा देगा, किन्तु कुमार और महारानीजी का बाल भी बांका नहीं होने देगा।"
"बस, बस, शशांक ! देखो, मुझे कुछ आवाजें सुनाई दे रही हैं । लगता है कि शत्रु आ पहुंचे हैं। तुम जाओ-- शशांक !"
दूर से आती हुई टप-टप, टपा-टप की आवाजें सुनाई देने लगी थीं।
कुमार के सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर, महारानी के चरणों का स्पर्श करके, आँखों में आशंका असहायता और दुःख के आंसू भरे शशांक घने वृक्षों में चीते की भांति अदृश्य हो गया। जाते-जाते वह कह गया
"महारानीजी ! चिन्ता न करें। मैं आपके आस-पास ही रहूँगा।"
कोढ़ियों का काफिला खदर-बदर, खदर-बदर, आगे चल पड़ा।
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