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२८ पुण्यपुरुष
कुछ ही पलों बाद रानी और शशांक को यात्रियों का एक दल दिखाई पड़ा जो उस जनपथ पर धीरे-धीरे आगे बढ़ता चला आ रहा था। अति सामान्य स्थिति के दिखायी देते लगभग पांच-सात सौ स्त्री-पुरुषों-बालकों का वह एक यात्री दल था। उनके साथ कुछ खच्चर थे, कुछ बैलगाड़ियां थीं। ये लोग कौन हो सकते हैं और किस उद्देश्य से किधर जा रहे होंगे, यह समझ सकना कठिन था।
सतर्क दृष्टि से उस काफिले का परीक्षण-सा करते हुए शशांक ने रानी से कहा___"महारानीजी ! यह कोई यात्रीदल है। मैं जाकर पता लगाता हूँ कि ये लोग कौन हैं, कहाँ जा रहे हैं । यदि सब कुछ ठीक हुआ, भाग्य ने हमारा साथ दिया तो हो सकता है कि दुष्ट अजितसेन से बचने का कोई मार्ग अभी हमारे हाथ में आ जाय । भविष्य भगवान के हाथ है।"
रानी की स्वीकृति पाकर शशांक सावधानी से जनपथ की ओर बढ़ा और एक वृक्ष की ओट लेकर खड़ा हो गया। यात्रियों का वह दल जब उसके बिलकुल समीप आ पहुंचा और आगे बढ़ने लगा तो उन लोगों को देखकर शशांक का मुंह उतर गया। उसकी आशाओं पर पानी फिर गया ।
वह यात्रीदल कोढ़ियों का था।
घृणा से मुँह फेरकर हताश-निराश कदमों से शशांक रानी के पास लौटा और बोला
"महारानीजी ! वह तो कोड़ियों का यात्रीदल है।
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