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________________ २६ पुण्यपुरुष शशांक की पदचाप सुनकर आशंकित रानी एकदम चौंक गई और उसने स्वयं को और कुमार को सघन कुंज में और भी अच्छी तरह ओट में कर लिया । फिर धीरे-धीरे उसने पत्तों की ओट से बाहर की ओर झाँका.... . शशशांक ! "ओह शशांक ........शशांक ! इधर आओ। मैं यहाँ हूँ । इस कुंज के भीतर ।” कहती हुई रानी शशांक की ओर दौड़ पड़ी । डूबते को तिनके का सहारा मिल गया । स्वाभिभक्त शशांक ने जब रानी को देखा तो उसके छूटते हुए प्राण लौट आये । उसकी क्षत-विक्षत देह में हजार हाथियों का बल आ गया । दौड़कर रानी के चरणों में कटे हुए वृक्ष की तरह गिर ही पड़ा और बोला ..... "महारानीजी ! परमात्मा को कोटिशः धन्यवाद कि आप मिल गईं। मैं तो आपकी और कुमार की चिंता से मर ही गया था ।" "मैं और कुमार सुरक्षित हैं, शशांक ! उठो, अब विलम्ब न करो । सबसे पहले अपने इन घावों को धो डालो, कुछ स्वस्थ हो लो, और फिर भविष्य का कार्यक्रम निश्चित करो । समय अमूल्य है ।" समझने वाले शशांक ने परिस्थिति की विषमता को रानी की आज्ञा का तुरन्त पालन किया । सबसे पहले उसने कुमार को गोद में लिया, उसे प्यार करके पुनः रानी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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