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पुण्यपुरुष
"शशांक ! अब मैं आ पहुँचा हूँ। मैं द्वार पर खड़ा हूँ। मेरे जीवित रहते कोई चिड़िया का बच्चा भी अन्दर प्रवेश नहीं कर सकेगा। किन्तु तुम शीघ्रता करो। महारानीजी और कुमार को गुप्त मार्ग से दक्षिण वन में जल्दी से जल्दी ले जाओ।"
शशांक समीप आकर सिर झुकाकर महारानी के पास खड़ा हो गया था। उसके कदमों में दृढ़ता थी। उसके चेहरे पर अटल निश्चय की रेखाएं थीं।
किन्तु घबराई हुई महारानी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या हो रहा है। उसने कहा___"मंत्रिवर ! बात क्या है ? आप इतने घबराए हुए क्यों हैं ? क्या किसी शत्रु ने राज्य पर आक्रमण कर दिया है ?"
"महारानीजी ! बाहरी शत्रु के किसी भी आक्रमण को विफल करने की शक्ति अभी चम्पानगरी के सैन्य में है। किन्तु घर के भेदिये ही जब लंका ढाने लगे तो परिस्थिति विकट हो जाती है। महारानीजी! अब बातों का भी समय नहीं है। मार्ग में शशांक आपको सब कुछ बता देगा । मैं स्वर्गीय पूज्य महाराज के नाम पर आपसे विनय करता हूँ कि आप अब एक भी पल का बिलम्ब न करें-एक पल का भी...."
मंत्री के शब्द अधूरे ही रह गए। तेजी से खटाखट सीढ़ियां चढ़ते हुए कुछ कदमों के भारी स्वर उसके कानों
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