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पुग्धपुरुष
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अब........कुमार और........कमल........का ध्यान रखना .........ॐ णमो अरिहंताणं........णमो........"
इस प्रकार राजा सिंहरथ चले गये थे, और नगरी उदास थी।
एक व्यापक शून्य चारों ओर घिरा हुआ था।
इस प्रशान्त शून्य के वेधक गाम्भीर्य को भीतर ही भीतर चीरते हुए अजितसेन और उसके सहयोगी तत्त्व सक्रिय हो रहे थे--गहन रात्रि के अन्धकार में, एक कोमल, अबोध बालक पर मारणान्तक प्रहार करने के लिए। किन्तु मतिमान मतिसार जागृत था।
अजितसेन राजा का चचेरा भाई था और शक्तिशाली था। सत्ता और सम्पत्ति के लोभ के मारे अनेक सैनिक तथा नायक भी धीरे-धीरे उसके पिछलग्गू बन गये थे। वे लोग जो षड़यन्त्र रच रहे थे उसका कोई ठोस प्रमाण अभी मन्त्री को प्राप्त नहीं हुआ था, अतः उनके विरुद्ध कोई सैनिक कार्यवाही भी नहीं की जा सकती थी किन्तु उनकी गतिविधियों पर एक तीक्ष्ण दृष्टि मंत्री रख ही रहा था।
एक अत्यन्त विश्वस्त और कुशल गुप्तचर ने आकर मंत्री को संदेश दिया___"मंत्रिवर ! महाराज के स्वर्गवास को अभी कुछ ही दिन बीते हैं, किन्तु अजितसेन और उसके साथी सामान्य
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