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१४ पुण्यपुरुष __ मन्त्री मतिसार गुमसुम खड़ा था। राजा के वचन सुनकर गद्-गद् कण्ठ से बोला--
__ "महाराज ! अन्नदाता ! भविष्य का विचार करके चिन्तित हूँ। कुमार अभी बालक ही है............।"
"सिंह का बच्चा सिंह ही होता है मन्त्रिवर ! चिन्ता क्यों करते हो ? और फिर तुम जो हो। तुम्हारे रहते क्या मुझे कोई चिन्ता करनी चाहिए ?"--राजा ने अर्थपूर्ण दृष्टि अपने मन्त्री पर गड़ाकर कहा।
मन्त्री ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया
"महाराज ! प्राण चले जायेंगे किन्तु कुमार का बाल भी बांका नहीं होने दूंगा। आप निश्चिन्त रहें।"
सुनकर राजा अपनी असमर्थ स्थिति में भी क्षीण मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोले
"मैं तो निश्चिन्त ही हूँ, मन्त्रिवर ! अब जाते-जाते किस चिन्ता को साथ ले जाऊँ ? उससे लाभ भी क्या है ? किन्तु तुम्हें सावधान किये जाता हूँ-जानते तो हो, न कि कुछ लोग मेरी अनुपस्थिति में उपद्रव उठा सकते हैं ?''
"जानता हूँ, राजन् ! एक-एक दुष्ट को पहिचानता किन्तु जब तक आपका सेवक यह मतिसार जीवित है, तब तक उन राक्षसों की एक नहीं चलेगी।"
"बस, मंत्रिवर ! इतना ही सुनना चाहता था। अब मैं शान्ति से अपनी महायात्रा पर जा सकूँगा। तो........
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