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१६ पुष्यपुरुष लोकाचार को भी ताक पर रखकर अब किसी भी रात्रि को कुमार की हत्या का प्रयत्न कर सकते हैं।"
यह समाचार सुनकर मन्त्री चिन्तामग्न हो गया। कुछ समय बाद उसने कहा
"शशांक ! तेरी तीव्र दृष्टि और चतुराई से कार्य करने को शक्ति पर ही मैं भरोसा किये बैठा हूँ। यदि तू असावधान रह गया तो मुझे जीवित चिता में जल मरने अथवा जल-समाधि ग्रहण करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं रहेगा। तेरी आयु छोटी है, कुमार से तू कुछ वर्ष ही बड़ा होगा। किन्तु तेरी शक्ति और योग्यता असीम हैं। तू इस युग का अभिमन्यु है।"
"आज्ञा कीजिए, मन्त्रिवर !" __ "यही सोच रहा हूँ कि क्या करू ? मुझे अपने मरनेजीने की तो कोई चिन्ता नहीं, किन्तु यदि कुमार को कुछ हो गया तो चम्पानगरी की प्रजा अनाथ हो जायगी। यह दुष्ट अजितसेन उसे पीस डालेगा।" ___ “मंत्रिवर ! आप नीतिनिपुण हैं, शक्तिमान हैं। किन्तु यदि मेरी धृष्टता न समझें तो एक निवेदन करना चाहता हूँ।"
"कहो शशांक ! क्या कहना चाहते हो?"
"मंत्रिवर ! सिंहासन हथियाने के लोभ में ये लोग अन्धे हो रहे हैं । करणीय-अकरणीय, पाप-पुण्य, भले-बुरे का इन्हें तनिक भी विचार नहीं है । किसी भी क्षण ये
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