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२७२ पुण्यपुरुष
वहाँ से च्युत होने पर तुझे पुनः मनुष्य जन्म ग्रहण करना होगा । इसी प्रकार मनुष्य से देवता तथा देवता से मनुष्य होते-होते क्रमशः नवें जन्म में तुझे मोक्ष की प्राप्ति होगी ।"
इतना कहकर राजर्षि उठ खड़े हुए और 'धर्म में आगे बढ़ो यह आशीर्वाद प्रदान कर वे अन्य दिशाओं में विचरण करने चल पड़े ।
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पुण्यात्मा श्रीपाल पर राजर्षि के अमृत वचनों का गहरा प्रभाव पड़ा था । उनका मन अब संसार से विलग होकर मोक्ष प्राप्ति के लिए छटपटाने लगा था । उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा था कि प्रत्येक पल जो बीता जा रहा है, वह अमूल्य है । एक पल के लिए भी अब प्रमाद करना आत्मघात के समान ही है । अतः उन्होंने मैनासुन्दरी से कहा
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"प्रिये ! राजर्षि के वचन तुमने भी सुने हैं । मैं अब पूर्णत: नवपद की आराधना में संलग्न हो जाना चाहता | तुम्हारा क्या विचार है ?"
यह सुनकर मैनासुन्दरी प्रसन्न हो गईं। उसने उत्साह में भरकर उत्तर दिया
" नाथ ! मैं तो आपकी चिर सहचरी हूँ। मैं भी अनुभव करती हूँ कि समय को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए । इस समय हमारे पास किसी वस्तु का अभाव नहीं है ।
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