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पुण्यपुरुष २७१ समय जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। मैंने स्वयं को सम्हाला और चारित्र ग्रहण किया। क्रमशः मुझे अवधिज्ञान प्राप्त हुआ, अत: मैं तुम्हें उपदेश देने यहाँ आया। ___ "बस, अन्त में इतना ही कहना है कि तुम यह निश्चय जानो कि प्राणी जो कर्म करता है, उसका फल उसे भोगना पड़ता है। अतः प्राणी को बहुत सावधानीपूर्वक अपनी जीवन-चर्या रखनी चाहिए तथा यथा-सम्भव कर्म-बन्धन से बचना चाहिए।"
राजर्षि अजितसेन इस प्रकार श्रीपाल महाराज के पूर्वजन्म का वृत्तान्त उसे सुनाकर तथा सदुपदेश देकर मौन हो गये।
किन्तु यह कथा सुनकर श्रीपाल के मन में वैराग्य के भाव उदित हुए। उन्होंने कहा___ "पूज्य मुनिवर ! आपके सदुपदेश से मेरा बड़ा कल्याण हुआ है। किन्तु इस समय मेरी अवस्था पूर्णरूप से चारित्र ग्रहण करने की नहीं है। अतः मुझे कोई ऐसी धर्मक्रिया बताइये जो मेरे लिए इस अवस्था में उपयुक्त हो और उससे मेरा कल्याण हो।" .
राजर्षि ने श्रीपाल की प्रार्थना सुनी और कहा
"राजन् श्रीपाल ! अभी तुझे अनेक कर्मों का फल भोगना शेष है। अतएव इस जन्म में तुझे चारित्र की प्राप्ति होना कठिन है। किन्तु नवपद की आराधना करने से तू नवें देवलोक में देवता होकर उत्पन्न हो सकता है।
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