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२७० पुण्यपुरुष प्रभाव से तुम्हारे रूप में उत्पन्न हुआ है। अर्थात् विगत जन्म के राजा श्रीकान्त ही आज तुम राजा श्रीपाल हो। ___"किन्तु तुमने मुनियों को सताया था इसलिए तुम्हें भी इस जन्म में कोढ़ी बनना पड़ा, समुद्र में गिरना पड़ा और कलंकित भी होना पड़ा। तुमने जो ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त की है वह नवपद की आराधना के ही परिणामस्वरूप है।
"श्रीकान्त की रानी की आठ सखियों ने भी नवपद की आराधना तथा अनुमोदना की थी। अतः वे इस जन्म में तुम्हारी छोटी रानियाँ हुई। इनमें से सब से छोटी रानी ने एक बार अपनी सौत से कहा था-'तुझे साँप काट जाय ।' अतः उसे इस जन्म में सर्प ने काटा था। उन सात सौ सेवकों ने भी नवपद के माहात्म्य की अत्यन्त प्रशंसा की थी, अतः वे इस जन्म में राणा हुए। ___"राजन् ! उस सिंह राजा ने सात सौ सुभटों का नाश किया था, अत: उसे इसका बड़ा खेद हुआ था। अन्त में उसने चारित्र ग्रहण कर, एक मास का अनशन धारण कर शरीर त्याग किया था। दूसरे जन्म में वही सिंह राजा मेरे रूप में उत्पन्न हुआ। उस जन्म में तुमने मेरे राज्य पर आक्रमण कर उसे लूटा था, अतः मैंने इस जन्म में बाल्यावस्था में ही तुम्हारे राज्य को छीन लिया था। उस जन्म में सात सौ सुभटों को मैंने नष्ट किया था, अतः उन्होंने बाँधकर मुझे तुम्हारे सामने प्रस्तुत किया। - "राजन् ! पूर्वजन्म के सुकृत्यों के कारण मुझे उसी
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