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________________ पुण्यपुरुष । २७३ अतः अब हमें नवपद की आराधना आरम्भ तो कर ही देनी चाहिए, बल्कि यह आराधना अधिक से अधिक समारोहपूर्वक करनी चाहिए ताकि उसका अधिक से अधिक सुफल हमें तथा साथ ही अन्य लोगों को प्राप्त हो। अपने समस्त राज्य का शासन-भार महाराज श्रीपाल ने अपनी ही प्रतिमूर्ति अपने ज्येष्ठ पुत्र त्रिभुवनपाल को सौंप दिया। ___ चम्पानगरी का समस्त वातावरण बदला हुआ था। सर्वत्र प्रेम और शान्ति की अमृत-वर्षा हो रही थी। महाराज श्रीपाल मैनासुन्दरी सहित पूर्ण समारोह पूर्वक, एक चित्त होकर नवपद की आराधना में संलग्न हो गये थे। ___ एक पुण्यात्मा महापुरुष का महान् जीवन अपने महानतम लक्ष्य-मोक्षप्राप्ति की ओर अग्रसर हो रहा था। कर्म के बन्धन एक-एककर टूटते जा रहे थे। अब तो देखते-सुनने वाले तथा हम सोचते हैं कि इस पुण्य कथा के पाठक भी विस्मयविमुग्ध तथा आनन्दमग्न सोचते होंगे-अहा ! ऐसे पुण्यात्मा परम पुरुष का जन्म इस देवभूमि भारतवर्ष में अब फिर कब होगा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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