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________________ साहित्य में एक शब्द है, अतिशयोक्ति। प्रायः मनुष्य अपने कथन में अतिशयोक्ति का प्रयोग करते हैं। किन्तु यदि अतिशयोक्ति न मानी जाय तो हम कहेंगे कि श्रीपाल महाराज का लम्बा शासन-काल रामराज्य के समान ही था। उनके राज्य में सर्वत्र शान्ति थी, ऋद्धि और सिद्धि थी तथा प्रजा के गरीब से गरीब अथवा छोटे से छोटे व्यक्ति का भी सम्मान था, उसके विचारों का आदर था। स्वयं श्रीपाल महाराज का हृदय धर्म की भावना से ओत-प्रोत रहता था। उनका अनुकरण करते हुए उनकी रानियाँ, राजपुरुष तथा समस्त प्रजा पूर्णरूप से धर्माचरण में ही लीन रहा करती थी। जैन मुनिराजों का आवागमन चम्पापुरी में प्रायः होता ही रहता था और सारी प्रजा उनके धर्मोपदेशों को श्रद्धापूर्वक श्रवण करती थी तथा निष्ठापूर्वक उनके आचरण का अनुगमन भी किया करती थी। इसी प्रकार एक बार चम्पानगरी में राजर्षि अजितसेन का आगमन हुआ। विचरण करते हुए वे उधर आ निकले थे और नगरी से बाहर एक विशाल और हरे-भरे उद्यान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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