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________________ पुण्य पुरुष २६३ में ठहरे थे । राजा श्रीपाल को जब उनके शुभागमन का शुभ समाचार प्राप्त हुआ तब वे अपनी सभी रानियों तथा अन्य राजपुरुषों सहित उनके दर्शन-वंदन तथा उपदेश श्रवण हेतु उस उद्यान में जा पहुँचे । चम्पानगरी के हजारों नागरिक भी अपने धर्मानुरागी महाराज के साथ थे । महाराज श्रीपाल तथा अन्य सभी लोगों ने विधिवत राजर्षि को वंदन किया । तत्पश्चात् राजर्षि ने अपनी अमृतवाणी में धर्मोपदेश दिया- तथा मोह का "हे भव्य प्राणियो ! तुम अपनी आत्मा का कल्याण चाहते हो तो जिन भगवान के वचनों को श्रवण कर उन्हें अपने हृदय में धारण करो परित्याग कर दो । मोह का त्याग किये बिना प्राणी को कभी शान्ति नहीं मिल सकती और भवचक्र का आवागमन कभी समाप्त नहीं हो सकता । " हे भव्य प्राणियो ! मनुष्य जन्म बड़े पुण्यों के प्रभाव से प्राप्त होता है । उसमें ही आर्यभूमि में जन्म पाना तो और भी दुर्लभ है । पुण्यों के प्रभाव से ही मनुष्य जन्म, आर्यभूमि तथा उत्तम कुल प्राप्त होते हैं । इस सुअवसर का पूरा-पूरा उपयोग आपको कर लेना चाहिए | सद्गुण की शरण खोजनी चाहिए, क्योंकि वह भी दुर्लभ है । पुण्य के प्रभाव से जिसे सद्गुण की शरण प्राप्त हो उसे मनवचन काया से धर्म की आराधना करनी चाहिए। अपनी ही बुद्धि को सर्वोपम न मानकर, अभिमान का सर्वथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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