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पुण्यपुरुष
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सदुपयोग करना । तुम्हारे पिता ने यह सम्पत्ति अर्जित की थी, किन्तु उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी और उसका दुष्परिणाम उन्हें भोगना पड़ा। पुत्र विमल ! तुम्हारा नाम सुन्दर है । अपने इस नाम को सार्थक करना। अपनी बुद्धि को भी सदैव विमल ही रखना। कभी कोई कष्ट हो तो मुझे स्मरण करना। अपने पिता के स्थान पर मुझे ही समझना। ___ इतना ही नहीं, धवल सेठ के उन तीन मित्रों को भी महाराज श्रीपाल ने बुलाकर अपना मन्त्री नियुक्त किया जिन्होंने धवल सेठ को सन्मार्ग बताने का प्रयत्न किया था। संयोगवश वे अपने कार्य में सफल नहीं हो सके थे, धवल सेठ को सन्मार्ग पर नहीं ला सके थे, किन्तु अपने कर्तव्य का निष्ठापूर्वक उन्होंने निर्वाह किया था। इसका उचित पुरस्कार श्रीपाल महाराज ने उन्हें प्रदान किया। ___ इस प्रकार श्रीपाल महाराज के राज्य में कोई असंतुष्ट नहीं रहा। कोई दीन या दुखी नहीं रहा। उन्होंने याचकों को बुला-बुलाकर उन्हें प्रेमपूर्वक इतना दान दिया कि लोग दानी कर्ण की कीत्ति को भी भूल गये।
प्रेम, सहानुभूति, परस्पर आदर भाव तथा शान्तिपूर्वक श्रीपाल महाराज का शासन-काल इसी प्रकार बहुत काल तक चलता रहा। प्रजा बहुत जल्दी यह भी भूल गई कि कभी वह दुखी भी थी। अब चारों ओर जो कुछ भी दिखाई देता था वह था-प्रेम, निस्वार्थ और निस्संग प्रेम !
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