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समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा और शुभ घड़ी, शुभ दिवस में राजा सिंहरथ की रानी कमलप्रभा ने सूर्य के तेज को भी लजाने वाले एक शिशु को जन्म दिया। इतने सुन्दर, तेजस्वी और होनहार प्रतीत होने वाले पुत्ररत्न को पाकर राजा-रानी निहाल हो गये। उन्हें लगा कि जैसे उनके जन्म-जन्म के पुण्यकर्मों का शुभ फल उन्हें प्राप्त हो गया हो।
चम्पानगरी तो एक महोत्सव नगरी में ही परिवर्तित हो गयी । बन्दियों को मुक्त कर दिया गया। याचकों को प्रभूत दान वितरित किया गया। विद्वानों, कलाकारों, गुणीजनों, सज्जनों का समुचित सम्मान किया गया। अभाव नाम की कोई वस्तु चम्पानगरी में पहले भी नहीं थी, किन्तु अब तो समृद्धि, सुख एवं आनन्द का एक सागर ही मानों उस नगरी में उफन पड़ा ।
नगरी का छोटे से छोटा आवास भी सुगन्धित घृत के दीपकों से जगमगा उठा। द्वार-द्वार पर तोरण और
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