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पुण्यपुरुष ११ स्वामी के मस्तिष्क में भीषण विष-वमन करके सेवक अदृश्य हो गया।
अजितसेन चक्कर काटता रहा और सोचता रसा---- भाई सिंहरथ की तो कोई चिन्ता नहीं। वह तो अब पका पान ही है। कभी भी चल देगा। किन्तु उसकी सन्तान ............उसका पुत्र............क्या वह मेरे मार्ग का रोड़ा बनेगा ?............बनेगा ही। राजकुमार रहेगा तो अजितसेन के जीवन भर के स्वप्न का क्या होगा?
जो होना हो सो हो जायेगा। अजितसेन के मार्ग में जो भी रोड़ा आयेगा उसे उठाकर फेंक दिया जायगा........ ____ अजितसेन ने निश्चय कर लिया-चाहे कुछ भी करना पड़े, चाहे निरपराध शिशु की हत्या करने का जघन्य पाप भी क्यों न करना पड़े, किन्तु सिंहासन पर अधिकार करना ही है।
देवों की नगरी अमरावती की शोभा, सौन्दर्य तथा आनन्द-उल्लास को भी फीका कर देने वाली चम्पानगरी जब मंगल-समारोह मना रही थी तब अजितसेन के मस्तिष्क में इस अमानवीय और जघन्यतम षड्यन्त्र की रूपरेखा बन रही थी।
अमृत कुम्भ में भीषण कालकूट का विष-बिन्दु उफन रहा था।
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