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________________ के एक-दो चक्कर और लगायें। फिर एकाएक रुका, धूमकर उसने धूमल को जलती हुई दृष्टि से घूरा और कहा "घूमल के बच्चे ! तू गधा है।" __ "सो तो हूँ ही, मालिक ! वरना आप मुझे इतना प्यार क्यों करते ? गधे की दुलती बड़ी घातक होती है मालिक !" "हूँ, साफ-साफ कह, तेरा मतलब क्या है ?" "मतलब मेरा तो क्या होगा मालिक ! मतलब तो जो है सो आपका है। मगर मेरा मतलब है कि राजा अजितसेन की एक चुटकी बजेगी, उनके गधे की एक दुलत्ती पड़ेगी, और न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी। न रहेगा राजकुमार, न रहेगी राजकुमारी।" अपने दुष्ट सेवक के मुख से यह भीषण, कुटिल योजना सुनकर अजितसेन जैसा पाषाण-हृदय व्यक्ति भी क्षणभर के लिए तो काँप उठा । वह बोला "धूमल ! तू गधा ही नहीं, राक्षस भी है। क्या तू मेरे हाथ से शिशु-हत्या कराना चाहता है ?" "इतने छोटे-से काम में आपको हाथ लगाने की भला क्या आवश्यकता है स्वामी ! आपकी तो चुटकी बजेगी, बस । बाकी सारा काम तो यह गधा सम्हाल लेगा।" "वह तो एक ही बात है। लेकिन........लेकिन तू भाग यहाँ से । मुझे सोचने दे। चल भाग।" . Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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