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पुण्यपुरुष । समय, किस बात को देख-सुनकर, क्या विचार उसके स्वामी के मस्तिष्क में चक्कर काट रहे हैं, यह धूमल पलक झपकते ही जान लेता था।
स्वामी और सेवक एक ही थैली के चट्टे-बट्टे थे।
अजितसेन ने कुछ क्षण तक धूमल की ओर धूरकर देखा और फिर कहा
"धूमल ! तूने मेरी बहुत सेवा की है। तू होशियार भी है । अब बता, क्या होगा?"
अपनी बाईं आँख कुछ दबाते हुए धूमल ने उत्तर दिया ---
_ "स्वामी ! हिम्मत हारने से काम नहीं चलता इस संसार में। प्रत्येक समस्या का कोई न कोई समाधान तो होता ही है।" __ "लेकिन यह राजकुमार यदि सचमुच आ ही गया तो फिर मेरी अभिलाषा का क्या होगा ? वर्षों से मैं आस लगाये बैठा हूँ।"
"मालिक ! अभी से क्यों जी छोटा करते हैं ? राजकुमार आये या राजकुमारी, अपने को क्या फर्क पड़ता है ? क्या पिद्दी, क्या पिद्दी का शोरबा ? आपकी चुटकियों में तो बहुत दम है। मसल दीजिएगा।"-कहते-कहते धूमल कुटिलतापूर्वक 'खी-खी' करके हँसने लगा। - सुनकर भजितसेन विचार में पड़ गया। उसने कक्ष
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