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पुण्यपुरुष
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" मंत्रिवर ! आपका कथन यथार्थ है । लेकिन मैं व्यर्थ के रक्तपात तथा हिंसा से बचना चाहता हूँ । अतः उचित यही होगा कि किसी चतुर दूत को काका अजितसेन के पास चम्पापुरी भेजा जाय और उन्हें समझाया जाय कि वे स्वेच्छा से मेरा राज्य मुझे सौंप दें ।"
"प्रभु ! आपका विचार आपके उच्च आदर्शों के अनुकूल ही है । ऐसा प्रयत्न अवश्य किया जा सकता है । किन्तु मुझे सन्देह है कि अहंकारी अजितसेन आपकी इस नीतिसंगत बात को स्वीकार करेगा । मुझे तो युद्ध अनिवार्य दिखाई पड़ता है । विशाल लोकहित के लिए यदि एक बार युद्ध भी करना पड़े तो वह अनुचित नहीं है ।"
"ठीक है, यदि काकाजी को सद्बुद्धि नहीं आती है तो फिर युद्ध भी करना ही पड़ेगा । किन्तु पहले एक बार आप किसी दूत को वहाँ भेज दीजिए ।"
"जो आज्ञा, महाराज ! चतुर्मुख नामक हमारा दूत बहुत चतुर और नीतिज्ञ है। आज्ञा हो तो उसी को भेज दिया जाय ?"
"हाँ, ठीक है । उसे कहिए कि काकाजी को समझाने का वह पूरा यत्न करे ।"
सभी आवश्यक बातें समझा-बुझाकर मंत्री मतिसार ने चतुर्मुख को उसी दिन चम्पापुरी के लिए रवाना कर
दिया ।
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