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२५२ पुण्यपुरुष . महाराज अजितसेन की राजसभा में जब वह पहुँचा
तो राजा ने उसे उचित आसन दिया और पूछा. "कहो चतुर्मुख ! कैसे आना हुआ? क्या संदेश लाये हो?"
चतुर्मुख ने राजा का पुनः अभिवादन किया और कहा___ "महाराज! मुझे आपके भतीजे महाराजाधिराज श्रीपाल ने आपकी सेवा में भेजा है। उनका संदेश है कि आपने बाल्यकाल में ही उन्हें अपने पिता के राज्य से वंचित कर दिया था। यह आपका एक बहुत बड़ा अनैतिक कार्य था। यह राजद्रोह भी था और बालद्रोह भी। किन्तु श्रीपाल महाराज का कथन है कि जो कुछ भी हो गया वह हो गया, लेकिन अब भी समय है। आप विचार करें तथा उनका राज्य उन्हें शान्तिपूर्वक सौंप दें।"
"राज्य सौंप दूँ ? और शांतिपूर्वक ?"-कहते-कहते अजितसेन खूब जोर से हँस पड़ा। हँसी रुकने पर उसने आगे कहा-"चतुर्मुख ! तुम बड़े चतुर हो यह मैं जानता हूँ। कितु मुझे प्रतीत होता है कि तुम भोले भी कम नहीं हो । इसीलिए मुझसे राज्य मांगने आये हो और वह भी शांतिपूर्वक । अरे भाई ! राज्य न तो आसानी से प्राप्त किये जाते हैं और न ही आसानी से किसी को दे दिये जाते हैं। राज्य तलवारों की नोक से लिये जाते हैं और तलवारों की तीक्ष्ण धारों से ही उनकी रक्षा भी की जाती है। कुछ समझे?"
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