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________________ पुण्यपुरुष २४९ को सूचना देकर बुलवाया गया और फिर प्रसन्नतापूर्वक सुरसुन्दरी को उनके साथ विदा किया गया । __श्रीपाल महाराज की बाल्यावस्था में जिन सात सौं कोढ़ियों ने उन्हें शरण दी थी और उनका साथ निभाया था, उन्हें भी श्रीपाल महाराज ने ढूंढ-ढूँढ़कर बुलवाया और एक सच्चे महान पुरुष की भांति उन सबको 'राणा' की पदवी से विभूषित करके अपनी सेना में सेनानायकों के पद पर नियुक्त किया। इस प्रकार श्रीपाल महाराज की महान् जीवन गाथा अपने भव्य अन्त की ओर तेजी से बढ़ रही थी। उसी समय उनके स्वर्गीय पिताजी राजा सिंहरथ के समय का वृद्ध तथा परम स्वामिभक्त मन्त्री मतिसार भी वहाँ आ पहुंचा। मतिसार ने अपने प्राणों की भी परवाह न करके श्रीपाल के जीवन की रक्षा की थी। आज उन्हें देखकर श्रीपाल महाराज के आनन्द की कोई सीमा न रही । उन्हें ऐसा अनुभव हुआ मानों उन्हें अपने पिता ही दूसरे रूप में प्राप्त हो गये हों। महाराज श्रीपाल ने मतिसार को उनके वृद्धत्व तथा अचल स्वामिभक्ति का सम्मान करते हुए अपना प्रधान अमात्य नियुक्त किया। सख के वे दिन एक-एक कर बीतने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003183
Book TitlePunya Purush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1980
Total Pages290
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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